कोरोना से भी तेजी से फैल रहा कपल चैलेंज वायरस

 

फेसबुक ने एकबार फिर 'कपल चैलेंज' का टास्क देकर युवाओं को उलझा रखा है। फेसबुक इस्तेमाल करने वाले ग्राहक पत्नी, महिला मित्रों की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं। इस मिशन में उम्रदराज लोगों की संख्या कम है, पर युवाओं का उत्साह देखते ही बन रहा है। समय-समय पर फेसबुक द्वारा दिए जाने वाले चैलेंज रूपी टास्कों पर कुछ संदेह होने लगा है कि इसके पीछे कोई साजिश तो नहीं ? जबकि पत्नी, बच्चों और पारिवारिक लोगों की तस्वीरें निजी सामग्री मानी जाती है। एक जमाना था, जब शादी-ब्याह के वक्त कोई घर की महिलाओं की तस्वीर चुपके से उतार लेता था तो लठ्ठासन की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। उस वक्त कोई व्यक्ति अपने घरों की महिलाओं की तस्वीरों को सार्वजनिक करना पसंद नहीं करता था। बड़े-बूढे तो सख्त खिलाफ हुआ करते थे। लेकिन समय बदल गया, पुरानी परंपराएं बेमानी हो गई हैं।

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बीते कुछ समय से फेसबुक के कहने मात्र से हम वैसा ही करने को राजी हो जाते हैं जैसा वह चाहता है। लेकिन थोड़ी देर के लिए शायद यह भूल जाते हैं कि इस चैलेंज से हम निजी जानकारियाँ तो उन्हें उपलब्ध नहीं करा रहे? इसके दूरगामी परिणाम अभी नहीं, कुछ समय बाद दिखाई देंगे। इसकी आड़ में कोई हमारा निजी वस्तुओं का डाटा बेस तो तैयार नहीं कर रहा है। यह गंभीरता से सोचने की जरूरत है। इन्हीं हरकतों को लेकर फेसबुक और व्हॉट्सएप पिछले कुछ समय से सवालों के घेरे में हैं। इनपर आरोप है कि ये दोनों ग्राहकों की निजी जानकारियों पर हमला कर रहे हैं। सुशांत सिंह राजपूत केस में व्हॉट्सएप के जरिए सामने आए ड्रग एंगल ने भी एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन पर सवाल खड़े किए हैं।


साइबर एक्सपर्ट भी अचंभित हैं कि कैसे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने सुशांत केस में बॉलीवुड ड्रग एंगल खोजा और कैसे पुराने संदेशों को एक्सेस करने में कामयाबी हासिल की? जबकि, सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म व्हॉट्सएप हमेशा से कहता आया है कि उसके संदेश सुरक्षित हैं कोई तीसरा पक्ष उन्हें एक्सेस नहीं कर सकता। फिर ये कैसे संभव हुआ। ये हमारे लिए सांकेतिक मात्र है। सिर्फ इतना समझने के लिए कि हम फेसबुक और व्हॉट्सएप पर जो गुप्त चैट करते हैं वह कतई सुरक्षित नहीं। कई साइबर जानकारों को संदेह है कि कहीं फेसबुक फिर से चैलेंज देकर हमसे हमारी निजी वस्तुओं को हथियाने की कोई सुनियोजित साजिश तो नहीं रच रहा?


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ग़ौरतलब है कि कुछ संदेह प्रमाणित भी हो चुके हैं कि फेसबुक और व्हॉट्सएप हमारी उन चीजों पर खास नजर रखता है जिसे हम गुप्त मानते हैं। उन चैट्स और फोटोज को डाटा बेस बनाकर अपने पास सुरक्षित रखता है। बाद में अपने हिसाब से उसका मिसयूज खुद नहीं, बल्कि दूसरों के जरिए करवाता है। इसकी भनक केंद्र सरकार को भी है लेकिन हम फेसबुक-व्हॉट्सएप के इतने आदी हो चुके हैं कि इनके बिना रह नहीं सकते। इसलिए फेसबुक हमसे जो भी करवाता है, हम करने को राजी हो जाते हैं। फेसबुक इससे पहले भी साड़ी चैलेंज, 20 वर्ष पुरानी फोटो जैसे टास्क यूजरों को दे चुका है। ग्राहकों ने भी उनके आदेश को हाथोंहाथ लिया। लोगों ने पुराने संदूकों, अलमारियों, किताबों से खोज-खोजकर फोटो निकाले और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट किए। बहरहाल, इन सबके पीछे हम अपनी जरा भी अक्ल नहीं लगा रहे।


चीन द्वारा करीब नौ से दस हजार भारतीयों की जासूसी कराने का मामला इस वक्त चर्चाओं में है जिनमें हर क्षेत्र के लोग शामिल हैं। उन्होंने ये डाटा सोशल नेटवर्किंग साइटों से एंट्री करने के अलावा अपने गुप्तचरों के माध्यम से एकत्र करवाया। ये काम एकदिन का नहीं, बल्कि सालों का है। फेसबुक की पहुंच अब मेट्रो शहरों तक सीमित नहीं रही, गांव, कस्बों, देहातों तक यह फैल चुका है। फेसबुक की दीवानगी लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है। खेतों में काम करने वाला मजदूर भी प्रत्येक पांच-दस मिनट के अंतराल में अपनी फेसबुक आईडी चेक करता है, देखता है क्या-क्या हलचल हुई। फेसबुक या सोशल नेटवर्किंग साइटों में कोई एक देश नहीं, बल्कि समूचा संसार गिरफ़्त में है। ज्यादा से ज्यादा समय लोगों का इन्हीं में खप रहा है। आँखें, दिमाग सबकुछ खराब हो रहा है बावजूद इसके किसी संभावित खतरे की कोई परवाह नहीं।


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फेसबुक यूज में हम इतने मग्न हो गए कि दैनिक एक्टिविटी भी नियमित रूप से फेसबुक को बता देते हैं। किनसे मिले, पूरे दिन में क्या किया, किस प्रोजेक्ट में हाथ डाला, किस मित्र से मिले, फलाना-फलाना सबकुछ हम फेसबुक से साझा कर रहे हैं। गौर से सोचने वाली है कि हमारे पास फिर बचा क्या? सबकुछ तो सार्वजनिक कर दिया। बुजुर्गों ने हमें सदैव यही सिखाया है कि एक हाथ से करो, दूसरे हाथ को पता तक न चले।


सोशल मीडिया ने इंसान के रहन-सहन के तरीकों को बदलकर रख दिया है। हम दिन में क्या खा-पी रहे हैं, क्या ओढ़- पहन रहे वह भी यहां शामिल होता है। कुल मिलाकर सुबह से लेकर शाम को सोने से पहले की सभी सूचनाएं हम साझा कर रहे हैं। जमाना भेड़चाल का है, एक करता है तो उसके देखा-देखी दूसरा भी वैसा ही करता है। सही-गलत बताने की कोई कोशिश भी करता है तो उसे आड़े हाथों ले लिया जाता है। अभिव्यक्ति की आजादी, मॉडर्न युग, आधुनिकता की दुहाई देकर उसे सरेआम नंगा कर दिया जाता है। खैर, कहने का मकसद मात्र इतना है कि सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करने से पहले हमें एकबार सोचना चाहिए।


डॉ. रमेश ठाकुर

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