क्या जीडीपी गिरने के बाद भी जनता मोदी के साथ है ?

जिस जीडीपी को गांव की गरीब जनता नहीं जानती। गांव - शहर का युवा लंबे समय तक नहीं जानता था। उस जीडीपी की चर्चा सबसे अधिक है। एक लंबे समय तक मैं खुद भी जीडीपी नहीं जानता था और जब से जीडीपी के गिरने - बढ़ने को जानने लगा तब से मन मे यही प्रश्न है कि जीडीपी गिरने से मेरी निजी जिंदगी कितनी गिर गई ? जीडीपी बढ़ने से मेरी निजी जिंदगी कितनी बढ़ गई ? वैसे जीडीपी के बढ़ने से उम्र बढ़ने का कोई सवाल नहीं है फिर भी जीडीपी का आम युवा के जीवन स्तर पर तात्कालिक असर क्या है ? और भविष्य में फर्क क्या और कितना पड़ता है ? हाँ समाचार जगत में जरूर जीडीपी गिरने की चर्चा गिरती - बढ़ती रहती है और मोदी युग में सबसे अधिक चिंता जीडीपी की हुई है। 

कोरोना संक्रमण के कारण संपूर्ण विश्व में कोरोना संक्रमण से प्रभावित देशों की जीडीपी गिरी है। प्रत्येक देश में जीडीपी गिरने का कारण कोरोना संक्रमण है लेकिन भारत में जीडीपी गिरने का कारण कुछ और है ! यहाँ की राजनीति है ही कुछ ऐसी कि विश्व से अलग चर्चा ना हो तो पहचान भी भारतीय राजनीति की क्या रह जाएगी ? 

वैसे उन्नीसवीं शताब्दी के बाद ही जनता जीडीपी जैसे शब्द से परिचित हो पाई है। इक्कीसवीं शताब्दी में शहर और नगर की जनता जीडीपी शब्द को जानने लगी और चर्चा होने लगी परंतु यह सत्य है कि जीडीपी गिरने से जीवन स्तर तुरंत गिरता नजर नहीं आता। ऊपर से ये जीडीपी हर तीन महीने में गिर रही है और बढ़ रही है , इस जीडीपी का खेल मकड़ी के जाले की तरह है। जैसे मकड़ी अपने जाले में घूमती रहती है वैसे ही जीडीपी भी अपने जाल में घूमती रहती है। घर के अंदर जाला अगर लगा भी है तो जब तक नजर नहीं जाती लोग उस जाले को झाडू से हटाते भी नहीं है , यही हाल जीडीपी के हैं कि यदि मेन स्ट्रीम मीडिया जीडीपी - जीडीपी ना चीखे चिल्लाए तो देश की जनता को जीडीपी नामक चिड़िया के लैंड करने का पता भी नहीं चलेगा। 

अब ये भारत देश की राजनीति है कि यहाँ जीडीपी मोदी के कारण से गिरी है , शेष अमेरिका , आस्ट्रेलिया और जापान आदि देशों में जीडीपी कोराना संक्रमण के कारण से गिरी है परंतु भारत में जीडीपी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वजह से गिरी है। ऐसा बहुत से अर्थशास्त्र के ज्ञाता कह रहे हैं कि मोदी की गलत नीतियों की वजह से जीडीपी गिर गई है। वह अन्य देशों की राजनीति और गिरती जीडीपी के कारणों पर चर्चा नहीं करते सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी व जीडीपी की चर्चा करते हैं। 

एक ऐसा ही सवाल ट्विटर पर उड़ रहा था। ट्विटर की चिड़िया सवाल बनकर उड़ रही थी। वह सवाल यही था कि क्या जीडीपी गिरने के बाद भी लोग मोदी के साथ हैं ? इस पर भी यही था कि मोदी के साथ हैं ? देश के साथ की कहीं कोई बात नहीं थी ? लोगों को देश के साथ होना है या मोदी के साथ ! 

अब उस सवाल पर जवाब बड़े दिलचस्प नजर आ रहे थे। जो विरोधी थे वे मोदी को कोसते जा रहे थे और जो मोदी के समर्थक थे वे मोदी को सराहते जा रहे थे। हाँ कुछ ऐसे जवाब दिलचस्प थे कि जीडीपी का क्या ? वो तीन महीने बाद फिर बढ़ जाएगी लेकिन देश सुरक्षित हाथो मे हैं। वे चीन पर भारत के दबदबे की ओर इशारा कर रहे थे और कह रहे थे कि ऐसा पहली बार हुआ है। इसलिए यह पता चला कि जीडीपी गिरने ना गिरने के पीछे सरकार पर मीडिया ट्रायल है जो एक खास विचारधारा की समर्थक मीडिया के द्वारा खास मकसद से किया जाता है। लेकिन वो मीडियाई तबका इस मीडिया ट्रायल पर प्राइम टाइम नहीं करता है। जबकि हकीकत यही है कि गांव की जनता अभी भी जीडीपी नहीं जानती और जीडीपी का असर शहरी युवा व मध्यमवर्ग आदि पर नहीं पड़ता ऊपर से महामारी के दौर मे जनता वैश्विक स्तर पर नजर टिकाए बैठी है जो अन्य देश की गिरती जीडीपी को भी जानती है , इसलिए जनता को इस मीडिया ट्रायल से फर्क नहीं पड़ता और वो तमाम विरोध के मध्य जनता का एक वर्ग अभी भी मोदी समर्थक नजर आ रहा है , बस जीडीपी मीडिया ट्रायल में गिर - बढ़ रही है। 

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