सत्ता के जारी संघर्ष मे जनता को मानसिक संक्रमण से बचाना आवश्यक है .

जब हमारे पास सत्ता होती है। जब किसी के पास सत्ता होती है। वह सत्ता मे होता है। सत्ता के समय उसका प्रभाव किसी सबसे बड़ी अदृश्य ताकत की तरह होता है। उसकी दिव्यता का आकार - प्रकार बढ़ता हुआ महसूस होता है। लोगों की भीड़ उसके आसपास होती है। अनचाहे रिश्तेदारों की लंबी फेहरिस्त होती है , वह सबका होता है और सभी उसके होते हैं। यही एक बड़ी वजह है कि सत्तासीन व्यक्ति सत्ता के समय धृतराष्ट्र की प्रवृत्ति को अनजाने में प्राप्त हो जाता है , चूंकि सत्ता की माया ही ऐसी है। 

वह न्याय के लिए सिंहासन पर बैठता है , पर सिंहासन की क्षणिक रक्षा के लिए अन्याय व कुकृत्य करने लगता है। जब तक वह सत्ता मे होता है तो उसे अपना अन्याय और कुकृत्य समझ में नहीं आता है। उसके आसपास सियार प्रवृत्ति के रिश्तेदार अहसास ही नहीं होने देते। चूंकि सियार हर वक्त उसे सही होने का अहसास अपनी बोली - भाषा से कराते रहते हैं। 

वर्तमान समय में सत्ता की माया लगभग हर सत्तासीन को ऐसे ही जाल मे फंसा लेती है और उस माया से वशीभूत होकर इंसान एक दिन सत्ता तो खो देता है पर व्यक्तित्व भी खो देता है। सत्ता संविधान के अनुसार एक ना एक दिन जाना तय होता है पर व्यक्तित्व खो जाने से इंसान का सबकुछ खो जाता है , फिर वह आमजन के दिल की सत्ता में कभी सत्तासीन नहीं रह पाता है। 

मैंने बचपन से सत्ता और इसकी माया को खूब महसूस किया है। मुझे आज भी याद है जब मां ब्लाक प्रमुख पहाड़ी हुईं तो सत्ता के प्रभाव में हर कोई प्रभावित हो जाता था। हमारे अपनों की लंबी फेहरिस्त थी और सभी हमारे बड़े शुभचिंतक थे। किन्तु यही सत्ता जब चली गई थी , तो जैसे पानी मिलाया दूध पकाने को रखा गया तो एक निश्चित तापमान के बाद पानी भाप बनकर उड़ गया और शेष सिर्फ दूध बचा था। 

ऐसे ही जब - जब हम प्रभावशाली हुए तब - तब ऐसे ही नजारा देखने को मिला। मैं एक ताकतवर राजनीतिज्ञ के यहाँ अक्सर आता - जाता और देखता कि अरे कितनी भीड़ है ! जिस दिन वे सत्ताच्युत हुए उस दिन के बाद से उनके दरवाजे की रौनक चली गई , मतलब साफ है कि लोग वहाँ अपने काम से आते थे।

इसलिए सत्ता मे रहने वाले लोगों को महसूस करना चाहिए कि लोग सत्ता की शक्ति के आकर्षण मे आपके आसपास होते हैं। सत्ता की ताकत से जनहित के कार्य किए जाएं , निष्काम भाव से किए जाएं। एक सत्तासीन व्यक्ति के जमीनी कार्यों को ही जनता अपने हृदय मे रखती है। यदि सत्ता के समय का दुरूपयोग किया गया तो तय मानिए कि सत्ता चली जाने के बाद व्यक्तित्व भी मर जाएगा फिर एक तिनका भी गालों पर आकर नहीं गिरेगा। 

इसलिए सत्ता के समय का सदुपयोग जनहित , समाज और राष्ट्र हित हेतु किया जाना चाहिए। हर संभव कोशिश हो कि गरीब - जरूरतमंद और मध्यमवर्ग का ध्यान रखा जाए और समाज में राष्ट्रव्यापी अच्छा माहौल बनाना चाहिए , चूंकि अच्छे माहौल मे ही प्रगति संभव है , वो परिवार के अंदर हो या राष्ट्र के अंदर ! निष्काम कर्मयोग से सत्ता के समय का सदुपयोग होने से सत्ता चली जाने के बाद भी आपके व्यक्तित्व की सत्ता आम नागरिक के हृदय मे अनवरत अस्तित्व मे बनी रहती है। 

इसलिए वर्तमान के सत्ताधीश - मठाधीश और दलों को यह समझने का वक्त आ गया है कि आप सभी को अपनी कार्य प्रणाली में बदलाव लाने की आवश्यकता है , महामारी के दौर में यह गूढ़ रहस्य समझ लें , जिसमें सभी की भलाई है। चूंकि वायरस संक्रमण की तरह राष्ट्र व समाज में मानसिक संक्रमण व्यापक स्तर पर फैल चुका है , फैल रहा है। सत्ता के जारी इस संघर्ष में जनता व युवाओं को मानसिक संक्रमण से बचाना आवश्यक है , इसी में राष्ट्रहित की सिद्धि है। 

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