हाँ ! मैं हूँ कलयुग का धृतराष्ट्र


देश में चल रहे अनोखे घटनाक्रम से मैं यह सोचने पर विविश हो गया कि आखिर हम हैं कहाँ? हिन्दुस्तान में? नहीं ऐसा तो नहीं लगता है कि हम अपने उसी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा वाले हिन्दुस्तान में रह रहें है, जहाँ सही को सही और गलत को गलत कहने की आजादी मिली हुयी थी। जी हाँ, ‘थी’ ही लिख रहा हूँ, क्योंकि आजादी मिली हुयी ‘है’ तो लिख नहीं सकता, इसलिए ‘थी’ ही लिखा है। वर्तमान समय में हिन्दुस्तान के अधिकतर भू-भाग में आम हिन्दुस्तानी से ‘सही को सही’ कहने का ‘अधिकार’ छीना जा चुका है। अब आप को यह अधिकार तभी प्राप्त हो सकता है जब आप एक पंथ विशेष के हो, जी हाँ ‘पंथ विशेष के’, क्योंकि पंथ विशेष के होने पर आप सड़क के बीचों बीच अपने पंथ के रहनुमाओं की याद में प्रतीक स्थल बना सकते हैं, वह अतिक्रमण नहीं होगा।

पंथ की इबादत के लिए इबादतगाह का निर्माण बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया को पूर्ण किये कर सकते, तब वह सरकार की दृष्टि में अतिक्रमण न होकर इबादत स्थल होगा। इसी प्रकार आप उसी पंथ विशेष के हैं तो आपको यह अधिकार स्वतः प्राप्त हो जाता है कि आप डोंगरी या उसकी जैसे अन्य किसी जगह पर कई इमारतों का निर्माण कर सकते, वह भी बिना सरकारी प्रक्रिया को पूर्ण किये हुये, वह भी अतिक्रमण नहीं होगा, भले ही देश ने आप को देशद्रोही क्यों न घोषित कर रखा हो। ऐसे सभी कृत्य- अवैध, असंमवैधानिक, अनैतिक या कुछ और जो कुछ आप समझना चाहे समझ सकते है नहीं होगा। बल्कि वह आपके रूतबे और ताकत का प्रदर्शन होगा।

वह ताकत जो सिर्फ और सिर्फ उसी पंथ विशेष के पास हो सकती है, हिन्दुस्तान में किसी और के पास नहीं। उस पंथ विशेष के अतिरिक्त यदि कोई अपने आत्मविश्वास और सच्चाई की ताकत के साथ अपनी बात रखता है तो पंथ विशेष के संरक्षकों व उनके पालनहारों को नगवार गुजरता है, वह उसको संविधान द्वारा प्रद्त्य मौलिक अधिकार का हनन करते हुए यह बताते हैं कि वर्तमान समय में मेरा ‘मैं’ ही सर्वोपरी और श्रेष्ठ है।

तुम्हारी हैसियत तुक्ष्य कीड़े के समान है जिसे मेरे ‘मै’ द्वारा जब चाहुँ कुचल सकता हूँ क्योंकि पंथ विशेष के संरक्षक आज मेरी ‘सत्ता के रथ’ के ‘सारथी’ है। अतः सारथी जहाँ रथ को ले जायेगा मैं वहीं जाऊंगा, भले ही मेरे संस्कार कैसे भी हों। वर्तमान में ‘मैं कलयुग का धृतराष्ट्र’ हूँ। जिसके लिए उसकी अपनी सन्तान पहले है न कि हिन्दुस्तानी।





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