संकोच बड़ी चीज होती है , आदमी मे यमराज है या भगवान ?

कहेंगे बारात के लिए तैयार रहना , हमने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला दी। पिछले दिनों बिटिया की शादी से आए थे, वहाँ भी बड़े संकोच से नाश्ता करना पड़ा फिर भी खाना खाने से बच गए थे। 

जाने क्यों हम जीना चाहते हैं ? जीने - मरने की जद्दोजहद लगी हुई है। शायद मरना भी चाहते हैं तो महामारी से नहीं मरना चाहते भला मौत का इससे सरल उपाय क्या होगा ? कोरोना से मर गया, सरकार और सिस्टम ने खा डाला। 


कुछ लोग कह देंगे लड़का बड़ा अच्छा था , इतना तो विश्वास है। 

इधर मैं सोचता हूँ कि बारात का निमंत्रण मिल रहा है कि मौत का निमंत्रण मिल रहा है। उस आदमी को मानसिक रूप से देखता हूँ तो मुस्कुराता हुआ यमराज नजर आता है, साक्षात कोरोना नजर आता है। 

मैं जानता हूँ इस देश मे शादी बहुत जरूरी है और बुंदेलखण्ड मे सबसे ज्यादा जरूरी है। आखिर लड़का बेचारा बड़ा हो गया है और लड़की भी शादी लायक हो गई। हम जिगर वाले हैं " जहाँ दो गज की दूरी जरूरी है वहाँ दो गज की दूरी मिटाते हैं "। आखिर दिल मिले ना मिले देह मिल जाती हैं, आकर्षण मे शक्ति होती है लेकिन प्रेम !


कुछ महीने के लिए शादी नहीं टाली जा सकती वरना जाने क्या क्या हो जाएगा ? घाटा, गरीबी सबकुछ हो जाएगा। लड़का धंधा - पानी करने लायक हुआ नहीं उसके धंधे - पानी के लिए कर्जा लेकर - देकर कुछ किया नहीं जा सकता लेकिन शादी के लिए जमीन भी बेच देंगे और कर्जा भी लेंगे फिर सुहाग रात के सुख के बाद शुरू होंगे कलह के दिन। सास - बहू का निपटारा और फिर बंटवारा विकसित भारत मे समाज की बड़ी भूमिका है। 

संकोच - संकोच मे बाराती भी पहुंच जाते हैं और कोरोना भी बेचारा लुत्फ उठा लेता है। होश आने पर सरकार को गाली देना है, प्रधानमंत्री को गाली देना है और पसंदीदा मुख्यमंत्री को चहेते मझले बेटे की तरह बख्श देना है। दल - बल की बात होगी तो यही सबसे बडा अवसर है कि फलनवा मुख्यमंत्री होता तो जनता की जान बच जाती फिर जाने वे बारात ना ले जाते और कोरोना लाकडाऊन मे लौट जाता। 

कुलमिलाकर के संकोच की थ्योरी को टेस्ट कर रहा था। कि संकोच कितना बड़ा है और संकोच की इज्जत कितनी है। डर कितना है कि अरे बारात मे ना जाएंगे तो व्यवहार खराब हो जाएगा और छवि मे काला धब्बा पड़ जाएगा। इस डर - संकोच से क्या बारात मे चला जाना चाहिए ? 

सचमुच मरना चाहता हूँ पर कोरोना से नहीं ! महामारी की शहादत ही नहीं चाहता वरना लोग मेरी अच्छाई - बुराई से ज्यादा एक मुई सरकार को कोसेंगे कुछ देर फिर जिंदगी वही स्वरग - नरक की हो जाएगी। 

सोचिए हम जिंदगी मे क्या करेंगे ? देश के लिए क्या करेंगे ? समाज को क्या देकर जाएंगे ? जब हमसे बड़ा हमारे अंदर का संकोच है ? जब हमसे बड़ा हमारे अन्दर का भय है ? हमसे बड़ी हमारे अंदर की इज्जत है ? इसलिए मौत बड़ी या जिंदगी ? संकोच बड़ा या कोरोना ? 



मैं तो यही सोचता हूँ कि जनता की क्या भूमिका है ? जिंदगी के लिए उसके लिए एक दूसरे के लिए कितना सोचते हैं , सोचिए ! कोरोना अगर पैर पसार रहा है तो हमारी वजह से , हम ही उसके रक्तबीज हैं। चूंकि हम संकोच मार नहीं सकते और कहते हैं कि जिंदगी जी रहे हैं , असल मे क्या हम जिंदगी जी रहे हैं ? क्या यही जीवन दर्शन है जो जिंदगी हम जी रहे हैं ? 

पता नहीं ; मैं क्या कहना चाहता था और क्या कह गया ? पर फैसला आप करिएगा कि संकोच बड़ा है या कोरोना ? संकोच बड़ी बीमारी है या कोरोना ? संकोच मार रहा है या कोरोना ? आदमी मे यमराज है या भगवान।

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