फिल्म सिटी : दावे पर अमल की दरकार

सियाराम पांडेय 'शांत'

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में देश की सबसे खूबसूरत फिल्म सिटी के निर्माण की बात कही है। उनकी इस घोषणा की कुछ फिल्म अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने सराहना की है। उप्र में फिल्म सिटी निर्माण की योजना नई नहीं है। यहां की फिल्म नीति 2001 में ही बन गई थी, 19 साल बाद भी अगर यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि फिल्म सिटी हर राज्य में बननी चाहिए थी ताकि हर राज्य की प्रतिभाएं अपनी कला का जादू दिखा सकें। इसलिए यथाशीघ्र फिल्म सिटी निर्माण योजना पर अमल आरंभ किया जाना चाहिए।


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि देश को एक अच्छी फिल्म सिटी की जरूरत है। उत्तर प्रदेश इस जिम्मेदारी को लेने के लिए तैयार है। फिल्म सिटी के लिए नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे का क्षेत्र बेहतर होगा। यह फिल्म सिटी फिल्म निर्माताओं को बेहतर विकल्प उपलब्ध कराएगी। साथ ही, रोजगार सृजन की दृष्टि से भी यह अत्यंत उपयोगी प्रयास होगा। देखा जाए तो फिल्म सिटी बनने के फायदे ही फायदे हैं फिर भी यह योजना वर्षों तक क्यों लटकी रही, सवाल यही है।

मुख्यमंत्री के बयान के बाद फिल्म सिटी कहां बनेगी, इसे लेकर कयासों का बाजार गर्म है। ज्यादा संभावना इस बात की है कि फिल्म सिटी नोएडा या ग्रेटर नोएडा में बन सकती है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उत्तर भारत में फिल्म इंडस्ट्री बनाने की मांग तेज हो गई। फिल्म जगत से जुड़े उत्तर भारत के लोग इस बाबत जहां मांग बुलंद कर रहे हैं, हाल में ही संसद में भोजपुरी अभिनेता व गोरखपुर के सांसद रविकिशन व समाजवादी पार्टी की नेत्री जया बच्चन के बीच बयानबाजी के चलते भी यह मामला सरगर्म है।


कंगना रणौत ने योगी आदित्यनाथ की घोषणा की प्रशंसा करते हुए कहा है कि लोगों की धारणा है कि भारत में सर्वश्रेष्ठ फिल्म उद्योग हिंदी फिल्म इंडस्ट्री है, यह गलत है। तेलुगु फिल्म उद्योग ने खुद को शीर्ष स्थान पर पहुंचा दिया है। अब वह पूरे भारत में कई भाषाओं में फिल्मों को पहुंचा रहे हैं। कई हिंदी फिल्मों की शूटिंग हैदराबाद के रामोजी में की गई है। भोजपुरी अभिनेता और गोरखपुर के सांसद रविकिशन ने कहा है कि यूपी में फिल्म सिटी बनने की घोषणा से भोजपुरी फिल्मों को लेकर चल रहा उनका संघर्ष सफल हो गया है। उप्र फिल्म विकास परिषद् के अध्यक्ष राजू श्रीवास्तव ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में अब भोजपुरी ही नहीं, अवधी में भी फिल्में बनेंगी। क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्म बनाने के लिए मुंबई न जाना पड़े इसलिए नोएडा, वाराणसी और लखनऊ में फिल्म सिटी बनेगी। वाराणसी में फिल्म सिटी बनाने का प्रस्ताव सरकार ने स्वीकार कर लिया है। उनका मानना है कि यूपी में दो फिल्म सिटी बनने से यहां के तकरीबन एक लाख लोगों को रोजगार मिलेगा।


गौरतलब है कि गौतम बुद्ध नगर के सेक्टर-16 में फिल्म सिटी पहले ही बसाई जा चुकी है। फिल्म सिटी में एक तरफ जहां मीडिया चैनलों की भरमार है। वहीं, टी-सीरीज, मारवाह समेत कई स्टूडियो मौजूद हैं। ऐसे में यहां नए सिरे से फिल्म सिटी बनाने की जरूरत क्यों पड़ गई, यह सवाल है।

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि उप्र फिल्मों की शूटिंग का नया ठिकाना बन सकता है। राज्य सरकार ने अंग्रेजी सहित किसी भारतीय भाषा में फिल्म की शूटिंग राज्य में करने पर 50 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की थी। इसके जरिए सरकार की योजना आगरा में ताजमहल, वाराणसी के गंगा के घाटों सहित अपने पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देने की थी।

योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसके लिए फिल्म की शूटिंग से जुड़े नियम-कायदों में बदलाव भी किया था। यही नहीं, नकद प्रोत्साहन राशि का दायरा भी बढ़ा दिया था। पहले यह राशि सिर्फ हिंदी या यूपी की क्षेत्रीय भाषाओं अवधी और भोजपुरी में बनने वाली फिल्मों के लिए ही उपलब्ध थी लेकिन योगी सरकार ने नियमों में बदलाव कर प्रोत्साहन राशि अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मों के लिए भी दिए जाने की घोषणा कर दी थी।


उत्तर प्रदेश में 'फिल्म बंधु' के चेयरमैन अवनीश अवस्थी ने कहा था कि भारतीय संविधान में दर्ज सभी भाषाएं अब हमारी फिल्म नीति का हिस्सा हैं। यदि यूपी में कोई तमिल या अंग्रेजी फिल्म बनती है, तो उसे लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए। दूसरी भाषा की फिल्म भी यूपी की संस्कृति को दर्शाती है और इससे आपसी संबंध मधुर होते हैं। अवस्थी ने योगी सरकार की इस प्रयास को 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' अभियान का हिस्सा बताया था। यूपी सरकार ने दावा किया था कि लखनऊ, आगरा और वाराणसी में फिल्म शूटिंग के लिए अलग सुविधाएं विसित की जाएंगी । फिल्म की शूटिंग और प्रचार के लिए हर जिले में सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी।


सवाल यह है कि जब उत्तर प्रदेश में सारे इंतजाम पहले से ही थे, इसके बाद भी यहां फिल्म उद्योग पनप क्यों नहीं सका? क्या इसके पीछे नौकरशाहों की लापरवाही है या सरकार पैसा खर्च करने के बाद भी फिल्म इंडस्ट्री को अपनी ओर आकृष्ट कर पाने में विफल रही। उत्तर प्रदेश में अनेक फिल्मों की शूटिंग हुई है। लॉली एलएलबी, मसान, बरेली की बर्फी आदि अनेक फिल्में इसके उदाहरण हैं। सवाल यह है कि हम फिल्म सिटी के निर्माण को लेकर क्या वाकई गंभीर हैं ?

सच यह है कि यूपी में देश की सबसे खूबसूरत फिल्म सिटी बनाने के दावे को अब केवल अमल की दरकार है। उम्मीद की जानी चाहिए कि योगी सरकार इस मुद्दे पर विचार करेगी और प्रदेशवासियों के सपनों की फिल्म सिटी बनाकर प्रदेश के विकास की नयी संभावनाओं के द्वार खोलेगी।

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