शिक्षक दिवस : नौ युवा शिक्षक जो बने बदलाव के नायक


गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का अहम और पवित्र हिस्सा है। माता-पिता का स्थान कोई नहीं ले सकता क्योंकि वे हमें इस दुनिया में लाते हैं। जीवन के पहले गुरु हमारे माता-पिता हैं। लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार प्रदान किया जाता है। हम आपको बताने जा रहे हैं देश के नौ ऐसे युवा शिक्षक जो शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव के नायक बने।


बाबर अली
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के एक छोटे-से गांव में रहने वाले बाबर अली ने उस उम्र से शिक्षक की भूमिका निभानी शुरू कर दी, जिस उम्र में लोग खुद पढ़ना-लिखना सीखते हैं। बाबर अली 9 वर्ष की उम्र से लोगों को पढ़ा रहे हैं। आज 23 साल के हो चुके बाबर अली किसी तरह से बनाए गए अपने स्कूल में 300 से ज्यादा गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इस काम के लिए उन्होंने 6 शिक्षकों को भी रखा है।

आदित्य कुमार
'साइकिल गुरुजी' के नाम से मशहूर साइंस ग्रेजुएट आदित्य कुमार शिक्षा के सच्चे वाहक और प्रसारक हैं। ये शिक्षा को उन जगहों तक पहुंचाते हैं, जहां स्कूलों की पहुंच नहीं। आदित्य हर रोज अपनी साइकिल पर सवार होकर 60-65 किमी सफर करके लखनऊ के आसपास के इलाकों में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। स्वयं एक गरीब परिवार में जन्मे आदित्य 1995 से यह कार्य कर रहे हैं। आदित्य अपनी साइकिल पर ही ब्लैक बोर्ड लेकर घूमते हैं। जहां उन्हें कुछ छात्र मिलकर रोक लेते हैं, वे वहीं बैठकर पढ़ाने लगते हैं।




राजेश कुमार शर्मा
दिल्ली के मेट्रो ब्रिज के नीचे है राजेश कुमार शर्मा का स्कूल। 'अंडर द ब्रिज स्कूल' के संस्थापक राजेश कुमार शर्मा दिल्ली के एक मेट्रो ब्रिज के नीचे लगभग 200 बच्चों का स्कूल लगाते हैं। उनके छात्र आसपास की बस्तियों में रहने वाले बच्चे हैं, जिन्हें गरीबी के कारण कभी स्कूल जाने का सौभाग्य नहीं मिला। इस स्कूल की भले कोई इमारत, कुर्सी या अन्य सुविधाएं न हों लेकिन बच्चों को शिक्षा अच्छी तरह दी जाती है। यह स्कूल इन्होंने 2005 से शुरू किया। कभी-कभी यहां कुछ चर्चित शख्सियतों को भी बुलाया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि राजेश कुमार पेशे से कभी शिक्षक नहीं रहे।

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सुपर 30 वाले आनंद कुमार
बिहार के पटना जिले में रहने वाले शिक्षक आनंद कुमार न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के बीच चर्चित नाम हैं। इनका 'सुपर 30' प्रोग्राम विश्व प्रसिद्ध है। इसके तहत वे आईआईटी-जेईई के लिए ऐसे 30 मेहनती छात्रों को चुनते हैं, जो बेहद गरीब परिवार से हों। 2018 तक उनके पढ़ाए 480 छात्रों में से 422 अबतक आईआईटियन बन चुके हैं। आनंद कुमार की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि डिस्कवरी चैनल भी उनपर डॉक्युमेंट्री बना चुका है। उन्हें विश्व प्रसिद्ध मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और हार्वर्ड युनिवर्सिटी से भी व्याख्यान का न्योता मिल चुका है।

एक रुपया में पढ़ाते हैं आरके श्रीवास्तव
बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले आरके श्रीवास्तव देश में मैथेमैटिक्स गुरु के नाम से मशहूर हैं। खेल-खेल में जादुई तरीके से गणित पढ़ाने का उनका तरीका लाजवाब है। कबाड़ की जुगाड़ से प्रैक्टिकल कर गणित सिखाते हैं। सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर स्टूडेंट्स को पढ़ाते हैं। आर्थिक रूप से सैकड़ों गरीब स्टूडेंट्स को आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई सहित देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में पहुँचाकर उनके सपने को पंख लगा चुके हैं। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्डस और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी आरके श्रीवास्तव का नाम दर्ज है।




आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्यशैली की प्रशंसा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कर चुके हैं। इनके द्वारा चलाया जा रहा नाइट क्लासेज अभियान अद्भुत, अकल्पनीय है। स्टूडेंट्स को सेल्फ स्टडी के प्रति जागरूक करने लिये 450 क्लास से अधिक बार पूरी रात लगातार 12 घंटे गणित पढ़ा चुके हैं। इनकी शैक्षणिक कार्यशैली की खबरें देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छप चुकी हैं, विश्व प्रसिद्ध गूगल ब्वाय कौटिल्य के गुरु के रूप में भी देश इन्हें जानता है।

रोशनी मुखर्जी का ऑनलाइन स्कूल
बेंगलुरु से ताल्लुक रखने वाली डिजिटल टीचर रोशनी मुखर्जी न तो कहीं पढ़ाने जाती हैं, न उन्होंने कोई स्कूल खोल रखा है। इसके बावजूद वे हजारों स्टूडेंट्स की फेवरेट टीचर हैं। असल में रोशनी ने अपना ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म बना रखा है, जिसका लाभ हजारों विद्यार्थी उठा रहे हैं। ये अपने वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड करती हैं, जिनकी मदद से स्टूडेंट्स पढ़ाई करते हैं। उन्हें अपने विद्यार्थियों से लगातार फीडबैक भी मिलता है।

अलख पांडेय
यूट्यूब सोशल मीडिया का वो प्लेटफॉर्म जो कई लोगों की सक्सेस का मंत्र बन रहा है, इसी यूट्यूब से भारत का एक लड़का अपने देश में तो फेमस हो ही गया लेकिन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी उसके लाखों फैन बन गए हैं। हम बात कर रहे हैं यूट्यूब के फिजिक्स वाले अलख पांडे की। जिन्होंने महज दो सालों में देश-विदेश में अपनी पहचान बना ली है। यूपी के प्रयागराज के अलख पांडे ने अपने शानदार काम से पाकिस्तान के साथ- साथ में नेपाल, बांग्लादेश और सऊदी अरब के स्टूडेंट्स और युवा इनके फैन बन गए हैं।

पेशे से अलख पांडे यूट्यूब पर फ्री फिजिक्स और केमिस्ट्री कोचिंग के वीडियो डालते हैं। एक तरह से अलख लाखों बच्चों को फिजिक्स और केमिस्ट्री की फ्री ऑनलाइन कोचिंग देते हैं। महज 2 साल में उनके यूट्यूब चैनल के सब्सक्राइबर 19 लाख से ज्यादा हो चुके हैं। अलख की पॉपुलरिटी का आइडिया आप इस बात से लगा सकते हैं कि उनके एक वीडियो पर 22 मिलियन व्यूज हैं। इसी के साथ अब अलख दुनिया के सबसे फेमस ऑनलाइन टीचरों में शामिल हो गए हैं। जेईई-मेन्स, जेईई-एडवांस्ड, इंजीनियरिंग एंटरेंस इग्जाम के साथ ही नीट, मेडिकल एंटरेंस की तैयारी करने वाले देश-दुनिया के औसतन 2 करोड़ 20 लाख स्टूडेंट हर महीने उनके वीडियो देखते हैं। अलख का फिजिक्स समझाने का जो तरीका है स्टूडेंटस उसे ज्यादा पसंद करते हैं।

ममता मिश्रा
सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिका ममता मिश्रा के पढ़ाने के तरीके से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने रेडियो प्रोग्राम मन की बात में उनके प्रयासों की सराहना करते हुए उनकी तारीफ की। बाद में उनकी हौसलाअफजाई करते हुए उन्हें एक पत्र भी लिखा था। वे उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के ही विकासखंड चाका स्थित एक सरकारी माध्यम परिषदीय विद्यालय में बतौर शिक्षिका सेवाएं दे रहीं हैं। आज ममता मिश्रा के सरकारी स्कूल के बच्चों को क्षेत्र के निजी स्कूल के बच्चों के बराबर आंका जाता है। हो भी क्यों न, उनके पढ़ाने का तरीका कुछ ऐसा है कि हर-एक बच्चा पढ़ाई में अव्वल है।

निरंजन झा
बिहार के पूर्णिया जिले के रहने वाले शिक्षक निरंजन झा खुद दृष्टिहीन होने के बावजूद बच्चों के बीच शिक्षा का दीप जलाकर समाज के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं। पूर्णिया शहर के गुलाबबाग शानि मंदिर मोहल्ले में टीन के शेड में गरीबी का दंश झेल रहे 37 वर्षीय दिव्यांग निरंजन झा आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। लोग निरंजन को मास्टर साहब के नाम से सम्मान के साथ पुकारते हैं।


निरंजन ने लुई ब्रेल की कहानी से प्रेरणा ली और ब्रेल लिपि से पढ़ना सीखा। कुछ दिनों तक तो उन्होंने एक स्कूल चलाया लेकिन बाद में घर पर ही ट्यूशन पढ़ाने लगे। निरंजन ने अपनी दिव्यांगता को खुद पर कभी हावी नहीं होने दिया और न ही परिवार तथा समाज पर बोझ बने। इन्होंने अपने सामने आने वाली हरबाधा को बखूबी अपने अंदाज़ में हल किया। अपने अदम्य हौसले की बदौलत समाज में सम्मान के साथ जी रहे हैं।

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