पीएम मोदी के जन्मदिन को विपक्ष ने बनाया बेरोजगार दिवस तो यूपी सरकार पर भी उठ रहे सवाल ?

गिनाने के लिए काम थे. 'जय अखिलेश' का भावनात्मक समंदर था. मीडिया की सुर्खियां थी. परिवार के झगड़े का खुलकर सड़क पर बिखर जाने के बावजूद पार्टी और उसके समर्थकों का सम्पूर्ण समर्थन था. जीतने के लिए इतना कम नहीं था. लेकिन हासिल हार रही. अपने चूल्हों की बेहतरी के लिए कुछ लोगों ने अपने बच्चों को अफ़सर बनाना ठान रखा था. अभाव की कोख से निकले छात्रों और परीक्षार्थियों का टापू इलाहाबाद, वाराणसी, लखनऊ से होता हुआ दिल्ली के मुखर्जी नगर तक फैल गया. सफलता असफलता के पड़ावों से गुज़रते कॉपी किताबों वाले ये टापू कभी थकते नहीं. एक जोश, एक प्रेरणा, एक उत्साह इन्हें नोट्स दर नोट्स, एग्जाम दर एग्जाम ऊर्जावान बनाये रखता है. सियासत से सधी सरकारों ने अपने समर्थकों के लिए अक़्सर सरकारी नौकरियों में अवसर बनाए हैं. लेकिन अधिकारी बना पाना शायद सरकारों के एजेंडे में नहीं था या फिर उनकी समझ से परे.

 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के पहले यूपी लोक सेवा आयोग इलाहाबाद में भारी अनियमितता को लेकर छात्र आंदोलित हो गए थे. यूपी लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) के तत्कालीन अध्यक्ष अनिल यादव थे. उनपर अपनी जाति के परीक्षार्थियों के लिए फर्जीवाड़ा करने के आरोप गहराते जा रहे थे. दरअसल यूपीएससी के उस समय के परिणाम और अनिल यादव की नियुक्ति के तरीके को लेकर सवालों का उठना भी लाज़िमी था. यूपी लोकसेवा आयोग में आने से पहले अनिल यादव किसी कॉलेज में लेक्चरार थे. इसके बाद वे मैनपुरी के एक स्कूल के प्रिसिंपल बने. दिलचस्प आंकड़ा ये है कि यूपीएससी अध्यक्ष बनने के लिए 83 लोगों ने आवेदन किया था. इसमें 8 आईएएस, 20 से ज्यादा पीसीएस, 22 प्रोफेसर थे. इन 83 आवेदनकर्ताओं में अनिल यादव का नाम 83 यानि आख़िरी नंबर पर था. सवाल उठा कि अखिलेश यादव सरकार ने आईएएस, पीसीएस और प्रोफेसर की जगह अध्यक्ष की कुर्सी के लिए एक स्कूल प्रिसिंपल अनिल यादव को क्यों नियुक्त किया? अब ये अखिलेश यादव सरकार बेहतर बता सकती है कि इतने वरिष्ठों और योग्य लोगों पर अनिल यादव को तरज़ीह क्यों दी गई और उनकी नियुक्ति के पीछे क्या मंशा थी? लेकिन साबित तो कुछ नहीं हुआ.

 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी  एक के बाद राज्य जीतती जा रही थी. राज्यवार मुद्दे गर्माते और मोदी चमत्कार में वो राज्य भाजपा की झोली में आ गिरता. इसमें भाजपा ने साम दाम दण्ड भेद सबका खुलकर इस्तेमाल किया. 2017 ने दस्तक दी. विधानसभा चुनावों का बिगुल बजा. मुद्दों के बाज़ार में बहुत कुछ था, लेकिन वो कहा जाता है ना, ' उस ओर जमाना चलता, जिस ओर जवानी चलती है' ब्राण्ड मोदी ने यूपीएससी मुद्दे में अपने लिए सबसे ज्यादा अवसर देखा. मोदी जी ने बिना नाम लिए यूपीएससी को एक जाति से जोड़कर चुनावी कैम्पेन में तपिश पैदा कर दी. जाति विशेष को छोड़कर जो अभूतपूर्व लामबंदी हुई, वो वोटों की शक्ल में भाजपा की झोली में जा गिरा. नतीजतन भाजपा ने अपने इतिहास की सबसे मज़बूत सरकार बनाई. 

यूपी में अगली सरकार बनने में डेढ़ साल से कम का वक़्त बचा है. यूपीएससी के मसले पर भाजपा सरकार ने कुछ भी नहीं किया और ना ही कुछ करते दिखी. हो सकता है कि करने लायक कुछ रहा ही ना हो. दिखी तो बस छात्र हितों के खिलाफ़ ही. प्रतियोगी छात्र नोट्स से प्रश्नपत्रों तक यात्रा याद करते हैं, यात्रा कर नहीं पाते, क्योंकि योगी सरकार का ध्यान बस पुलिस बल को मजबूत करने में लगा है. योगी सरकार का ध्यान ऐसे राजनीतिक विरोधियों के व्यक्तिगत नुकसान करने में लगा है, जो हिन्दू नहीं हैं. शिक्षा के माध्यम से लोगों को रोजी रोजगार मिल सके, इस पर योगी सरकार संवेदनहीन और उदासीन नज़र आती है. नौकरी के लिए आयोजित की गई परीक्षाओं को देखें तो पिछली अखिलेश सरकार, योगी सरकार से बहुत आगे नज़र आती है. योगी सरकार एक तरफ जहां युवाओं के लिए कुछ सकारात्मक कर नहीं रही है, वहीं पहले से स्थापित सुविधाओं को घोंट जाना चाहती है. समहू ख ग घ की नौकरियों को पांच साल तक संविदा पर, फिर बड़े अफ़सर की संस्तुति के बाद आगे बढ़ाने और कार्यक्षमता के आधार पर पचास वर्ष की आयुसीमा में जबरदस्ती रिटायर कर देने की योगी सरकार की घोषणाएं कल्याणकारी राज की अवधारणा के विपरीत हैं. 

दरअसल ये तानाशाही की तरफ बढ़ता कदम है, योगी आदित्यनाथ को लगता है कि वो उत्तर प्रदेश को एक मज़बूत प्रदेश बना चुके हैं, और अब उत्तर प्रदेश को इसके लिए भुगतान के लिए तैयार रहना चाहिए. मजबूती, विकास और भुगतान के इस आभासी आभामंडल से दरअसल पूरी भाजपा आत्ममुग्ध है. भूख, सम्मान और बेहतर जीवन मूल्यों के लिए लड़ रहे लोगों के हालात सरकार तक क्यों नहीं पहुंच पा रहे, या क्यों नहीं सरकार इस बारे में कुछ करती दिखती, ये तो परमात्मा ही बेहतर बता सकते हैं. लेकिन एक बात मैं बता सकता हूं, जब तरुणाई अंगड़ाई लेती है तो शासन बदल जाता है. यूपी का मौसम हर बार बदलता है. 'काम बोलता है' वालों का काम बिलबिला गया था, यहां तो आलोचना करने के लिए काम भी कहां दिखते हैं.
 (डॉ. अम्बरीष राय की वाल से )

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