नास्तिक क्यों लेते हैं भगत सिंह का सहारा ! क्या यह हार है नास्तिकों की ?

@Saurabh Dwivedi 
नास्तिक इतने चतुर नास्तिक हैं कि वे शहीद भगत सिंह की नास्तिकता को प्रचारित करते हैं , तो यह स्व. भगत सिंह के प्रति आस्तिकता हुई अर्थात स्पष्ट है कि आप नास्तिक नहीं हो ! नास्तिक होने का ढोंग कर रहे हो चूंकि आस्तिक अर्थात जिन पर आस्था हो और नास्तिकों ने व्यक्ति के नास्तिक होने को प्रचारित कर भगत सिंह पर आस्था जताई है ! 

नास्तिक होना ईश्वर को ना मानना मात्र नहीं है। व्यक्ति के प्रति आस्था है तो आप आस्तिक हुए , वह भी स्व. भगत सिंह की नास्तिकता को प्रचारित कर एक प्रकार से नास्तिक होने के प्रति आकर्षण पैदा करना है , यदि प्रचार द्वारा नास्तिक होने को प्रमाणित कर रहे हैं और आकर्षण को उत्पन्न कर रहे हैं तो सर्वप्रथम सवाल उठता है कि आप नास्तिक नहीं हो ? 

नास्तिक व्यक्ति सिर्फ नास्तिक हो सकता है। नास्तिक होना एकदम व्यक्तिगत है और यह व्यक्तिगत अनुभव है। यदि नास्तिक भी समूह बना रहे हैं , किसी महान शख्सियत के व्यक्तित्व को बतौर नास्तिक स्थापित करते हैं तो यह तय हो जाता है कि नास्तिक बार - बार संतुष्ट हो जाना चाहते हैं कि देखो एक क्रांतिकारी नास्तिक था। यह वो आत्मसंतुष्टि के लिए कर रहे हैं , इससे सिद्ध होता है कि कहीं ना कहीं नास्तिकों मे हीन भावना जन्मी है ! 

ईश्वर कभी नहीं कहते कि मुझे माना जाए इसलिए वो नास्तिक हो या आस्तिक कर्म के अनुसार दोनों पर आंशिक कृपा समभाव से रखते हैं। यह ईश्वर के होने ना होने का संघर्ष नहीं अपितु आदमी के व्यक्तिगत मान्यता व अभिमान का संघर्ष है। 

यदि आप नास्तिक हैं तो यह जरूरी नहीं कि हर बार कहना पड़े कि बलिदानी भगत सिंह नास्तिक थे ! यह एक नास्तिक का विषय हो ही नहीं सकता इसलिए बलिदानी भगत सिंह के नास्तिक होने को आधार बनाने वाले कथित नास्तिक विचार करें कि नास्तिक होते हुए आपने कितना कुछ खो दिया है ? 

नास्तिक का भी अपना अस्तित्व है परंतु आस्तिकता हमेशा नास्तिकता पर भारी पड़ती है और इसका प्रमाण यही है कि वे भगत सिंह के नास्तिक होने को अपनी वैशाखी बना रहे हैं , यह नास्तिकों की हार है ! 

Comments