भारत का कोई भी चैनल बदल लो आवाज सिर्फ और सिर्फ अशांति की आएगी। युद्ध की आएगी। कहीं - कोई शांति की खबर नजर नहीं आएगी। कहीं कोई सुखद बातचीत नहीं होगी। यहाँ तो कभी उत्सव भी नहीं मनाए जाते और अगर उत्सव की खबर होगी तो उसमे भी भांग मिली होगी।
टीवी9 भारतवर्ष हाल के वर्ष में शुरू हुआ मासूम सा बच्चा है। हाँ इस चैनल को बच्चा ही कहा जा सकता है चूंकि बामुश्किल ही एक या डेढ़ वर्ष का चैनल होगा। थोड़ा हमारी टाइमिंग का अंतर हो सकता है पर तय है कि पांच साल से कम उम्र का शिशु चैनल है , पर चैनल है तो हाइब्रिड बीज से बढ़ता है। शुरू - शुरू प्रत्येक चैनल की तरह यह एक चैनल भी स्टिंग ऑपरेशन से चर्चा मे आया , और स्टिंग ऑपरेशन तत्कालीन भाजपा सांसद उदित राज का था।
कुछ समय पश्चात यह चैनल पाकिस्तान और भारत के युद्ध की संभावनाओं पर बहस करने लगा , फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के प्रत्येक जादुई किस्से पर भी स्टोरी की ! इन्होंने चैनल को जनहित की खबर की जगह युद्ध प्रसारण केन्द्र बना दिया। अभी हाल ही में चीन - भारत मे तनातनी है।
एक चैनल महज एक उदाहरण है। बल्कि हर चैनल की टीआरपी शायद युद्ध और अशांति से ही आती है। जहाँ सुख - शांति की बातों की संभावना ही नहीं बनती है। हर रोज डरावनी खबरों को बता - बता कर नामालूम आम इंसान के मन - मस्तिष्क मे क्या भरने का प्रयास हो रहा है ?
वैसे कोई चैनल वाला समझे ना समझे परंतु चैनल वालों को जनता खूब समझने लगी है और जनता का इन पर से विश्वास उठने लगना खतरे का निशान है। जनता और चैनल का विश्वास ही राष्ट्र निर्माण का पुल है जो छिन्न-भिन्न होता जा रहा है। इसलिए चैनल वाले स्वयं मे बदलाव लाएं अन्यथा जनता का मोहभंग होता जा रहा है और इससे बड़ा दुख यह है कि चैनल जितना युद्ध कराता है उतना ही जनता का विश्वास उठता जा रहा है। एक जिम्मेदार मीडिया संस्थान को कम से कम आम जन के मन से तनाव कम करना चाहिए और खबरों की वास्तविकता बताकर सृजनात्मक कार्य करने की ओर बल देना चाहिए , अधिक से अधिक सुख और शांति की डिबेट होनी चाहिए। युद्ध सीमा पर हो तो वह दो राष्ट्रों के मध्य संभव होने पर होगा ही परंतु जनता के मन - मस्तिष्क में युद्ध ना कराएं , उसे अयोध्या ही रहने दें। एक ऐसी अयोध्या जहाँ युद्ध नहीं होता जो अपराजेय है , ऐसा ही संतुलित मन - मस्तिष्क जनता का होना चाहिए। चैनल्स को समझना चाहिए कि एक जवान केे बलिदान पर परिजन कुछ यूं बदहवास होतेे हैं।
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