कोरोना वायरस : चीन में बने होने का दावा

 


चीन केवल दुनिया में कोरोना महामारी फैलाने का अपराधी नहीं, बल्कि कोविड-19 वायरस उसकी प्रयोगशाला में मानव निर्मित है। चीन की ही रोगाणु विज्ञानी डॉ. ली मेंग यान ने यह दावा किया है। यान ने कहा है कि 'वायरस के कृत्रिम होने का दावा सिर्फ हवा-हवाई नहीं है, बल्कि उनके पास इसके मानव-निर्मित होने के ठोस सबूत हैं। जिन्हें पेश करने के बाद चीन वैश्विक स्तर पर पूरी तरह बेनकाब हो जाएगा। नोवेल कोरोना वायरस वुहान की सरकारी प्रयोगशाला में बनाया गया है। 

यह प्राकृतिक होने की बजाय वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित है। इसका जीनोम अनुक्रम एक मानव फिंगर प्रिंट की तरह है। यही वह पुख्ता साक्ष्य है, जो इस वायरस की उत्पत्ति मनुष्य द्वारा होने को निश्चित करता है। वुहान के मांस बाजार से इसकी उत्पत्ति बताकर चीन सच्चाई पर पर्दा डालने की कोशिश में लगा है।' हांगकांग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से वायरोलॉजी ऑफ इम्यूनोलॉजी में विशेषज्ञता प्राप्त करने वाली यान ने संयुक्त राष्ट्र में शरण लेकर जान बचाई। 11 सितंबर को उन्होंने एक गुप्त स्थान से ब्रिटिश टॉक शो 'लूज वीमेन' में साक्षात्कार देकर कोविड-19 संक्रमण पर अपने शोध पर बातचीत करते हुए इस वायरस के कृत्रिम होने का खुलासा किया।

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इससे पहले फ्रांस के नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक लूक मांटेग्नर ने इस दावे का समर्थन किया था कि कोविड-19 महामारी फैलाने वाले नोवल कोरोना वायरस की उत्पत्ति प्रयोगशाला में की गई है और यह मानव निर्मित है। उनका यह भी दावा है कि एड्स को फैलाने वाले एचआईवी वायरस की वैक्सीन (टीका) बनाने की कोशिश में यह अधिक संक्रामक और घातक वायरस तैयार किया गया है। फ्रांस के सी न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में एचआईवी (ह्यूमन इमोनोडिफिशियंसी वायरस) के सहायक खोजकर्ता लूक ने बताया है कि 'इसीलिए कोरोना वायरस की जीन कुंडली में एचआईवी के कुछ तत्वों और यहां तक कि मलेरिया के भी कुछ तत्व मौजूद हैं।'

एशिया टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार चीनी शहर वुहान की प्रयोगशालाओं को वर्ष 2000 से कोरोना वायरस के गुण-दोषों की विशेषज्ञता हासिल है। याद रहे कि प्राध्यापक लूक मांटेग्नर को मेडिसन में एड्स के वायरस की पहचान करने के लिए 2008 में नोबेल पुरस्कार से सम्मनित किया गया था। उनके सहयोगी रहे प्राध्यापक फ्रैन एग्वोज बैग-सिनोसी को भी नोबेल से सम्मानित किया गया था।

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कोविड-19 वायरस का जन्म वुहान की प्रयोगशाला से हुआ है, यह चर्चा लगातार पूरी दुनिया में चल रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी निरंतर कह रहे हैं कि यह विषाणु चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी प्रयोगशाला में बनाया गया है। 

दरअसल आजकल जीवाणु व विषाणुओं की मूल सरंचना में जेनेटिकली परिवर्तन करके खतरनाक जैविक हथियार बनाए जाने लगे हैं। कोरोना के पहले भी चीन में ही कई वायरस पहली बार पाए गए हैं। 1996 में बर्ड फ्लू चीन से ही फैला और इसने 440 लोगों को मार गिराया। 2003 में दक्षिण चीन से सार्स नामक वायरस फैला और इसने दुनिया के 26 देशों के 800 लोगों के प्राण ले लिए थे। 2012 में चीन से ही मर्स नाम का वायरस फूटा और इसने 27 देशों में कहर ढाकर करीब 800 लोगों को मौत की नींद सुला दिया। इन सभी वायरसों का उत्सर्जन उसी वुहान शहर से हुआ है, जहां चीन की वायरॉलोजी पी-4 प्रयोगशाला है। इसलिए यह शक वैज्ञानिकों ने किया है कि कोरोना वायरस किसी अन्य वायरस के जीन में वंशानुगत परिवर्तन करते समय भूलवश प्रयोगशाला से निकला और दुनिया को महामारी के संकट में डालने का सबब बन गया।


प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने मानव समुदाय को सुरक्षित बनाए रखने की दृष्टि से जो चेतावनियां दी हैं, उनमें एक चेतावनी जेनेटिकली इंजीनियरिंग अर्थात आनुवांशिक अभियंत्रिकी से खिलवाड़ करना भी है। आजकल खासतौर से चीन और अमेरिकी वैज्ञानिक विषाणु (वायरस) और जीवाणु (बैक्टीरिया) से प्रयोगशालाओं में छेड़छाड़ कर एक तो नए विषाणु व जीवाणुओं के उत्पादन में लगे हैं, दूसरे उनकी मूल प्रकृति में बदलाव कर उन्हें और ज्यादा सक्षम व खतरनाक बना रहे हैं।

इनका उत्पादन मानव स्वास्थ्य के हित के बहाने किया जा रहा है लेकिन ये कोरोना की तरह ही बेकाबू होते रहे तो तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। कई देश अपनी सुरक्षा के लिए घातक वायरसों का उत्पादन कर खतरनाक जैविक हथियार भी बनाने में लग गए हैं। कोरोना वायरस के बारे में यह शंका स्वाभाविक है कि कहीं यह वायरस किसी ऐसे ही खिलवाड़ का परिणाम तो नहीं?

हॉलीवुड में ऐसी अनेक फिल्में बन चुकी हैं, जिनमें आनुवांशिक रूप से परिवर्धित किए वषाणु व जीवाणुओं के प्रकोप दिखाए गए हैं। दक्षिण भारत में बनी फिल्म चैन्नई वर्सिस चाइना भी इसी कड़ी की फिल्म है। इसे हिंदी में डब करके भी प्रसारित किया गया है। इस फिल्म में बताया गया है कि कांचीपुरम से चीन पहुंचे संत बोधिधर्मन ने यहां सूक्ष्म जीवों से फैलने वाली बीमारियों पर आयुर्वेद दवाओं से नियंत्रण पाया था।

फिल्मों की परिकल्पना अब प्रयोगशालाओं की वास्तविकता में बदल गई है। 2014-15 में फैले इबोला वायरस ने हजारों लोगों के प्राण लील लिए थे। जबकि इबोला प्राकृतिक वायरस था। इबोला की सबसे पहले पहचान 1976 में सूड़ान और कांगों में हुई थी। अफ्रीकी देश जैरे की एक नन के रक्त की जांच करने पर एक नए विषाणु इबोला का ज्ञान हुआ था। यह नन पीले ज्वर (यलो-फीवर) से पीड़ित थी। 

करीब 40 साल तक शांत रहने के बाद एकाएक इस विषाणु का संक्रमण सहारा अफ्रीका में फैलना शुरू हुआ। इसके बाद इसका हमला पश्चिम अफ्रीका के इबोला में हुआ। जहां से यह बीमारी अन्य अफ्रीका मुल्कों में फैली। इबोला के विषाणु संक्रमित जानवर से मनुष्य में फैलते हैं। हालांकि यह महामारी में बदलता इससे पहले इसे काबू में ले लिया गया था। जब इबोला वायरस बड़ा तांडव रचने में कामयाब हो सकता है तो जेनेटिक इंजीनियार्ड वायरस तो वर्णसंकर होने के कारण भयंकर तबाही मचा सकता है। कोरोना पूरी दुनिया में मौत का तांडव मचा भी रहा है।

हम आए दिन नए-नए बैक्टीरिया व वायरसों के उत्पादन की खबरें पढ़ते हैं। हाल ही में त्वचा कैंसर के उपचार के लिए टी-वैक थैरेपी की खोज की गई है। इसके अनुसार शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को ही विकसित कर कैंसर से लड़ा जाएगा। इस सिलसिले में स्टीफन हॉकिंग ने सचेत किया था कि इस तरीके में बहुत जोखिम हैं। क्योंकि जीन को मोडीफाइड करने के दुष्प्रभावों के बारे में अभीतक वैज्ञानिक खोजें न तो बहुत अधिक विकसित हो पाई हैं और न ही उनके निष्कर्षों का सटीक परीक्षण हुआ है। उन्होंने यह भी आशंका जताई थी कि प्रयोगशालाओं में जीन परिवर्धित करके जो विषाणु-जीवाणु अस्तित्व में लाए जा रहे हैं, हो सकता है, उनके तोड़ के लिए किसी के पास एंटी-बायोटिक एवं एंटी-वायरल ड्रग्स ही न हों?

दरअसल, मानव निर्मित वायरस इसलिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि इसे पहले से उपलब्ध वायरस से ज्यादा खतरनाक बनाया जाता है। कोरोना वायरस के कृत्रिम होने की आशंका है, इसीलिए इसकी प्रकृति के बारे में देखने में आ रहा है कि यह बार-बार रूप बदल रहा है। इसीलिए इसका नया अवतार संक्रमण के मामले में पहले से ज्यादा आक्रामक होता है। लॉस अलामोस नेशनल लेबोरेट्री के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के नए रूप की पहचान की है। 

इन वैज्ञानिकों का दावा है कि वायरस का नया स्ट्रेंड जो इटली एवं स्पेन में दिखा था वह अमेरिका के पूर्वी तट पर पहुंचने के बाद नए अवतार के रूप में देखने में आया। इसीलिए इसने वुहान में फैले संक्रमण की तुलना में अधिक लोगों को न केवल संक्रमित किया, बल्कि प्राण भी लिए। इसीलिए कोविड-19 की रामबाण दवा या टीका बनाने में सफलता नहीं मिल पा रही है।

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