वेब सीरीज आश्रम : हिंदुओं की आस्था पर आघात


विवेक अवस्थी (लेखक, विचारक)

बाँदा बुन्देलखण्ड

कल जब एक परिवार में भोजन पर गया तो उनके द्वारा कही बातों ने अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने कहा बेटा और बेटी के साथ टीवी देखना कितना शर्मिन्दा जनक हो गया है। उन्होंने कहा कि बाल मन विज्ञापन या किसी दृश्य पर कई सारे प्रश्न पूछ बैठता है, बोलता है, इसको तो जनता हूँ पर ये किस चीज का प्रचार है। 

जवाब देते नही बनता। दूध का प्रचार तो एक बार और अंतरंग साधनों का अनगिनत बार, मोबाइल में यूट्यूब में जब अबोध बालक कार्टून के लिए जाता है तो सबसे पहले अश्लील नग्न पोस्टरों से उसका सामना होता है उसके अंतर्मन में युवावस्था तक क्या प्रभाव पड़ेगा और उस भावी पीढ़ी का क्या होगा, क्या यही भावी पीढ़ी के सर्वांगीण विकास, व्यक्तित्व विकास का उचित मार्ग या साधन है। वर्तमान में तो मर्याद शब्द ही विलुप्त जैसा होगया है, अगर अवशेष है तो वो भी तारतार हो गया।

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क्या यही विकास की परिभाषा है,अगर ये विकास है तो ये भारतीय सनातन मूल्यों को नरकलोक ले जएगा।  जल्द इन सब विषयो को लेकर माननीय उच्च न्यायालय में PIL "जनहित याचिका" दायर किया जाएगा। ये सब सोचकर लिखने में विवश हो गया,आज समय की रफ्तार को तो जैसे पंख लग गए हैं, वक्त के साथ हर चीज का व्यवसायीकरण होता जा रहा है। हर कोई अपनी तिजौरियों को भरने में लगा हुआ है, सामाजिक, नैतिक मूल्यों की तो जैसे किसी को परवाह ही नहीं है। पूँजीवाद के इस कड़वे सच की कल्पना शायद हमारे पूर्वजों ने कभी नहीं की थी।

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समय के साथ सिनेमा के क्षेत्र में आए गम्भीर बदलाव दर्शाते हैं कि पूँजीवाद कैसे हमारे नैतिक मूल्यों पर हावी हो गया है। मनोरंजन को पहले मानव जीवन में नीरसता को दूर करने के साधन के रूप में समझा जाता था परन्तु आज इसका अर्थ बेमानी हो गया है। मेरी स्मरण शक्ति पर जोर देने से याद आता है कि बचपन में कैसे हम बिना रंगीन तस्वीर के बॉक्सनुमा डिब्बे को देखने के लिए जद्दोजहद करते थे, छत पर लगे 2-4 इंच के एंटीना से धुंधली तस्वीर को दूर करने के लिए आए दिन कसरत करते थे।

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लेकिन विज्ञान के चमत्कारों के सामने खास चीजें आम हो गई है, आए दिन होने वाले आविष्कारों के सामने हर चीज बौनी नज़र आती है। इस प्रगति ने दुनिया को छोटा कर दिया है साथ ही टीवी की पहुंच आमजन तक लाने का श्रेय भी वैज्ञानिक तकनीक को जाता है। किसी भी देश के लिए तकनीकी विकास स्वागत योग्य है लेकिन इस प्रगति से अगर सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों का ह्रास कतई तारीफ योग्य नहीं हो सकता।

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आज के दौर में मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता हर घर में परोसी जा रही है जो कि किसी भी देश के सामाजिक सरोकार के लिए उचित नहीं हो सकता। हम सब ने ऐसा दौर भी देखा है जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर रामायण, महाभारत जैसे पौराणिक कथाओं के जीवन्त रूप को टीवी पर देखकर आनन्दित होते थे। इस तरह के धारावाहिकों को देखने के लिए पूरी गली, मौहल्ले में सन्नाटा पसर जाता था, वहीं आज का दौर है जहाँ सिर्फ मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता को परोसा जाता है। आज कोई भी व्यक्ति सपरिवार टीवी नहीं देख सकता, अगर गलती से पूरा परिवार एक साथ बैठकर देखने लग भी गया तो अश्लीलता की परकाष्ठा ऐसी है कि एक दूसरे की बगले झांकने लगते है।

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प्रकाश झा द्वारा निर्देशित ‘आश्रम’ ‘वेब सीरीज’ को केवल हिन्दू धर्म को बदनाम करने और हिन्दुओं के मन कलुषित करने के उद्देश्य से ही बनाई गई है । वास्तव में प्राचीन काल से भारत के उत्थान में आश्रम व्यवस्था का अतुलनीय योगदान रहा है । सुसंस्कारित और देशभक्त छात्र तैयार करनेवाले गुरुकुल तो आश्रम ही थे । आज भी संपूर्ण भारत में साधु-संत और आध्यात्मिक संस्थाओं के आश्रमों में चल रहे सेवाकार्य से समाज, राष्ट्र एवं धर्म के उत्थान का भव्य कार्य हो रहा है । हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम, इन चार आश्रम प्रक्रियाओं से गुजरता है । आश्रम’ वेबसीरीज के संदर्भ में मैं निम्नांकित सूत्रों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ।

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१. इस वेबसीरीज में जिस आश्रम का उल्लेख किया गया है, वह ‘काशीपुर’ गांव में होने का बताया गया है । काशी हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थान है । उसके नाम से समानतावाले गांव का नाम दिखाकर जानबूझकर हिन्दुओं के धार्मिक क्षेत्रों की प्रतिष्ठा धूमिल करने का प्रयास इस माध्यम से किया गया है । 

२. इस वेबसीरीज में अभिनेता बॉबी देओल द्वारा निभाई गई ‘बाबा निराला’ की भूमिका समान व्यक्तिरेखा कुछ महीने पूर्व गिरफ्तार किए गए पाखंडी बाबा राम रहीम की भांति दिखनेवाली है; परंतु वे अन्य पंथ के हैं और उनके उपासना केंद्रों को ‘आश्रम’ नहीं कहा जाता । हिन्दुओं के उपासना केंद्र अर्थात ‘आश्रम’को बदनाम किया जा रहा है । इस वेबसीरीज के ट्रेलर में ‘भक्ति या भ्रष्टाचार’, ‘आस्था या अपराध’ जैसे वाक्य लिए गए हैं । ऐसे वाक्य हिन्दुओं के मन में व्याप्त आश्रम व्यवस्था के प्रति आदरभाव को नष्ट करनेवाले हैं।

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आजकल की ‘वेब सीरीज’ की निर्मिति पर नियंत्रण रखनेवाली कोई व्यवस्था न होने से कला के नाम पर अश्‍लीलता, नशा,भडकाऊ हिंसा, हिन्दूद्वेष, सेना का अनादर, राष्ट्रद्रोह आदि अनुचित बातें बेछूट दिखाई जाती हैं, आखिर इस अनादर की श्रेणी में हिन्दू सनातन सभ्यता पर ही षड्यंत्र क्यो ? दरअसल देश में विकास के जरिए आने वाले बदलाव का दुष्प्रभाव सिनेमा के क्षेत्र पर भी पडा है, जिसके परिणामस्वरूप जनमानस के चरित्र में भारी गिरावट हुई है, नैतिक मूल्य, सभ्यता, संस्कृति, अचार,विचार बोलचाल, पहनावा, मर्यादा से विहीन पतन की ओर अग्रसर हैं। वहीं नग्नता का ताजा-ताजा माध्यम की बात करें तो बहुत सी फिल्में, बेब सीरीज, धारावाहिक इत्यादि भी है जो सामाजिक नैतिकता मूल्यों के स्तर को गिराते जा रहे है।




इस तरह सिने-सिनेमा जगत में मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता दिखाने से युवा पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है क्योंकि युवा हमेशा फिल्मों और उनके किरदारों से प्रेरित होकर उनकी नकल करने की कोशिश करते है। वर्तमान में ऐसे कई युवाओ के मुंह से मिर्जापुर बेब सीरीज की गन्दी गली, डायलॉग मैं अपने कानों से सुन रहा हूं। हमारे सामने ऐसे कई फिल्मों के उदाहरण है जिनके कारण युवाओं की मानसिकता पर गलत प्रभाव पड़ा है। वह विधि विरुद्ध आचरणों की ओर रुचि ले रहा है, जिसका भविष्य बहुत भयावह है।

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विश्व में हमारे देश को सांस्कृतिक मूल्यों की धरोहर के रूप में जाना जाता है ऐसे में इस तरह की फूह़डता कहाँ तक वाजिब है यह भी सोचनीय विषय है। हमारे समाज में संस्कारों और संस्कृति पर ही पूरी पारिवारिक प्रथा टिकी हुई है अगर हम भी पाश्चिमी संस्कृति से अभिभूत हो जाएंगे तो समाज में असंतोष फैल जाएगा। आजकल हर टीवी चैनल टीआरपी के चक्कर में अश्लीलता को परोस रहा है चाहे उसका माध्यम कोई भी हो जैसे- प्रिंट मीडिया, इलैक्ट्रानिक मीडिया, न्यू मीडिया।

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आज फिल्मों ने तो नग्नता की सारी हदें पार कर दी है, नायक-नायिका के बीच निजी पलों को बड़ी ही खुले तौर पर दिखाया जाता है। आज सिनेमा क्षेत्र में जरूरत है कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखकर कार्यक्रम बनाए जाए, ताकि मनोरंजन के साथ-साथ समाज में सकारात्मक प्रभाव भी पड़े। आज लोगों को आदर्श उदाहरणों की जरुरत है ना कि ऐसे कार्यक्रम जो हमारी मानसिकता को दूषित करें। हाल ही में धर्मांध संगठन रजा अकादमी ने ‘मोहम्मद : द मेसेंजर ऑफ गॉड’ फिल्म पर आपत्ति दर्शाई थी ।

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उसी दिन महाराष्ट्र सरकार ने तत्परता के साथ इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाकर केंद्र सरकार से भी इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की अनुशंसा की । इसी प्रकार से अब भी महाराष्ट्र के गृहमंत्री को हिन्दुओं के आस्था के केंद्रों पर आघात करनेवाली इस फिल्म पर तुरंत प्रतिबंध लगाना चाहिए और उस प्रकार से केंद्र सरकार से अनुशंसा करनी चाहिए । 

३. केंद्र सरकार को विज्ञापन, नाटक, वेबसीरीज आदि के माध्यम से हिन्दू देवी-देवता, संत एवं राष्ट्रपुरुषों का अनादर रोकनेवाला कानून बनाना चाहिए।कृपया इस षडयंत्र के भागी न बने मुखर होकर विरोध करें, केंद्र, राज्य सरकारों को लिखें, जनसूचना की मांग करें।

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